“पुराने साथियों को सताते रहिये,प्रेम और क्रोध भी जताते रहिये।कभी हाले दिल ही बताते रहिये,कभी अपनी खबर सुनाते रहिये।छठे छमाही समय निकाल कर,दोस्तों की डोर बेल दबाते रहिये। कभी अपने घर की देहरी लांघ,दोस्तों के चक्कर लगाते रहिये।अपने छोटे दरबे के बाहर झांक,साथ में सुख दुःख सुनाते रहिये।जब मन अनमना सा महसूस करे,दोस्तों की डोर